Friday, October 31, 2014

कल रात लकीरों ने फिर से जता दिया
हादसों को यूँ ही नहीं किसी ने तक़दीर कहा है
तुम तो यूँ ही सजाते रहे ख़्वाबों का आशियाँ 
दिल में उनके तो अब भी कोई और बसा है
करो अहतराम उनकी मुहब्बत का
दिल के बहकने की बस यही सज़ा है

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