कुछ तो है जो मुझे बार-बार
तुम्हारी ओर ले आता है
मैं कुछ भी कह-कर लूँ
मैं तुम्हें यहीं महसूस करूँगी
जब तक कि मैं चली नहीं जाती
बिन-छुए थामते हो
बिन-ज़ंजीरों के जकड़ते हो
मैंने कभी इतना कुछ नहीं चाहा
जितना कि डूब जाऊँ तुम्हारे प्यार में
और मुझे तुम्हारी बारिश भी महसूस ना हो
कर दो आज़ाद
रहने दो मुझको
मैं नहीं चाहती गिरना तुम्हारी ग्रेवीटी में
मैं हूँ यहीं, खड़ी तुम्हारे संग, बिलकुल वैसे जैसे कि मुझे होना था
और तुम यूँ छाये हो मुझ पर
तुम्हें मुहब्बत मेरी नाजुकता से
मुझे शुमार अपने मज़बूत होने का
तुम्हारा छूना ज़रा सा
मेरी नाज़ुक ताक़त का यूँ बिखरना
मैं यहाँ ज़मीं पे
तुम्हें ये दिखाने की कोशिश में
कि तुम वो सब हो
जो मैं समजती हूँ मेरी ज़रूरत
ना तो मैं तुम्हें जाने देती
ना ही तुम मुझे उभरने देते
मुझे ज़मीं से बाँधे हो
तुम यूँ मुझ पर छाये हो
कुछ तो है जो मुझे बार-बार
तुम्हारी ओर ले आता है